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Special story

26 जून 1539 ई. में हुआ था चौसा का ऐतिहासिक युद्ध,निजाम भिस्ती ने चलाया था चमड़े का सिक्का

रिपोर्ट : विनोद सिंह

नेशनल आवाज़/बक्सर :- 15वीं सदी में गंगा व कर्मनाशा नदी के संगम पर हुए मुगल शासक व अफगानी शासक के बीच हुए महज कुछ घंटे की युद्ध ने चौसा का नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो गया. और भारतीय इतिहास में बादशाहियत का नया युग का आगाज करा गया. आज ही के दिन 26 जून 1539 ई. में अफगानी शासक ने महज एक घंटे के युद्ध में मुगल बादशाह को जान बचाने नदी में कूदकर भागने को मजबूर कर दिया था.

चमड़े का सिक्का चलाने वाला शासक निजाम भिस्ती

कहते हैं हुमायूं को चारों ओर से शेरशाह सूरी की सेना ने घेर लिया. उसे डर था कि शत्रु की सेना उसे बंदी बना लेगी इसलिए हुमायूं अपनी जान बचाने के लिए गंगा नदी की तरफ भागा. ऐसा माना जाता है कि हुमायूं को तैरना नहीं आता था. जब वह गंगा नदी में कूदा. तैरने नहीं आने के कारण वह गंगा नदी में डूबने लगा. उसी समय वहां पर निजाम भिश्ती अपनी मशक में पानी भरने के लिए आया था.उसने बादशाह को डूबते हुए देखकर अपनी मशक की मदद से हुमायूं को गंगा के उस पार छोड़ दिया. जिससे खुश होकर हुमायूं ने एक दिन के लिए बादशाह बनाया था. जिसने चमड़े का सिक्का चलाया जो इतिहास के पन्ने में यादगार बन गया.

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एक दिन का बादशाह बने चौसा का निजाम भिस्ती चला दिया चमड़े का सिक्का

इतिहास के पन्ने में स्वर्णाक्षरों में दर्ज महज कुछ घंटे की युद्ध ने चौसा के एक मामूली भिस्ती को चौबीस घंटे के लिए दिल्ली सल्तनत का ताज पहना दिया. बक्सर जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर पश्चिम गंगा व कर्मनाशा नदी के तट पर बसा चौसा गांव. सन 1539 में यही हुई थी मुगल बादशाह हुमायूं और अफगानी शासक शेरशाह के बीच लडाई. जिसमें गोरिल्ला युद्ध में पारंगत शेरशाह हुमायूं पर भारी पड़ा और मुगल बादशाह को अपनी जान बचाने के लिए उफनती गंगा में कूदना पडा.

युवा अफगानी शासक से युद्ध में लड़कर थक चुके हुमायूं गंगा नदी में डूबने लगा तभी नदी में मौजूद चौसा के निजाम भिस्ती की नजर एक डूबते हुए व्यक्ति पर पड़ी. उसने अपनी जान पर खेलकर मशक के सहारे डूबते हुए हुमायूं को गंगा से पार कराया . तब उसे क्या पता था कि जान बचाने के बदले उसे एक दिन दिल्ली का तख्तोताज मिल जायेगा. इस यूद्ध में परास्त हुमायूं जब दोबारा दिल्ली की गद्दी पर बैठा तो उसकी जान बचाने वाले चौसा के निजाम भिस्ती की याद आई और उसने निजाम भिस्ती को चौसा से बुलाकर एक दिन के लिए दिल्ली सल्तनत का बादशाह बना दिया.

24 घंटे के लिए मिली गद्दी के दरम्यान भिस्ती ने अनुठा फैसला लेते हुए चमड़े का सिक्का चलवा दिया. ये सिक्के आज भी पटना संग्रहालय समेत देश के अन्य म्यूजियमों में रखे हुए है. बहादुरी व अनुठे निर्णय से चौसा के निजाम भिस्ती का नाम हिंदुस्तानी इतिहास के पन्ने में बादशाह के रुप में दर्ज हो गया. अजमेर शरीफ में ख्वाजा दरगाह के मेन गेट के बगल में निजाम भिस्ती का मजार भी है जहाँ पर आज भी सलाना उर्स लगता है.

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