लालू प्रसाद यादव :सामाजिक न्याय की राजनीति का संघर्षशील प्रतीक





आलेख : बब्लू राज ,शोधार्थी वीर कुंवर सिंह यूनिवर्सिटी आरा सह -छात्र नेता AISF बिहार

नेशनल आवाज़/बक्सर :- आज बिहार ही नहीं, बल्कि पूरे देश में सामाजिक न्याय की राजनीति के एक अनोखे अध्याय के जन्मदाता, गरीबों-दलितों-पिछड़ों और वंचितों की बुलंद आवाज़, जननेता लालू प्रसाद यादव का जन्मदिन है. यह अवसर केवल व्यक्तिगत उत्सव का नहीं, बल्कि उस ऐतिहासिक परिवर्तन की स्मृति का है, जिसमें बिहार जैसे सामंती प्रवृत्तियों से जकड़े प्रदेश में सामाजिक बराबरी की चेतना का सूरज उगा था.
लालू प्रसाद यादव का जीवन उस दौर से शुरू होता है, जब दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को न तो पढ़ने की आज़ादी थी, न शासन-प्रशासन में भागीदारी। ऐसे समय में लालू यादव जैसे साधारण परिवार से निकले युवक ने पटना विश्वविद्यालय के छात्रसंघ का नेतृत्व कर यह स्पष्ट कर दिया कि बदलाव की आहट आ चुकी है.
उन्होंने न केवल सत्ता में भागीदारी दी, बल्कि आत्मसम्मान का बीज बोया. मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू कर उन्होंने पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का रास्ता खोला और सामाजिक व्यवस्था में हाशिए पर खड़े लोगों को मुख्यधारा से जोड़ा. यही कारण है कि वे आज भी केवल एक नेता नहीं, बल्कि एक आंदोलन के रूप में देखे जाते हैं.
उनके आलोचक उन्हें गंवार या हास्यप्रधान कहकर खारिज करते रहे, परंतु उनकी संवाद शैली और जमीनी समझ ने उन्हें आम जनता से जोड़ा. उनका ‘भाषा और भाव’ ही उनकी ताकत थी. यही कारण था कि उन्होंने नारेबाज़ी नहीं, बल्कि सत्ता की कुर्सी पर बैठाकर वंचितों को ‘असली भागीदारी’ दी.
निश्चित ही, उनके कार्यकाल में कई प्रशासनिक चुनौतियाँ और भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे. परंतु क्या यह उनकी सामाजिक परिवर्तनकारी भूमिका को नकारने के लिए पर्याप्त है? उन्होंने वह कर दिखाया, जो स्वतंत्र भारत में कुछ ही नेताओं ने किया — व्यवस्था को वंचितों के लिए खोला.
लालू प्रसाद यादव ने पुल-पुलिया नहीं बनाए — ऐसा आलोचक कहते हैं. लेकिन उन्होंने जो बनाया, वह अधिक मूल्यवान था — आत्मसम्मान की सड़क, प्रतिनिधित्व का पुल और समता की नींव.आज जब वे सक्रिय राजनीति से दूर हैं, तब भी उनके विचार, उनका संघर्ष और उनका ‘सामाजिक न्याय मॉडल’ राजनीति में जिंदा है.
हम उनके जन्मदिन पर यह कामना करते हैं कि वे शीघ्र स्वस्थ हों और एक बार फिर समाज के हाशिए पर खड़े लोगों की आवाज़ बनें. बिहार को लालू जैसे नेतृत्व की ज़रूरत है, जो केवल भाषण नहीं, दिशा दे सके.”नेता वह नहीं जो भीड़ में खड़ा हो, नेता वह है जो भीड़ को खड़ा कर दे. लालू यादव ने यही किया.”