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जीवन में हजारों लड़ाइयां जीतने से अच्छा है कि तुम स्वयं पर विजय प्राप्त कर लो : गौतम बुद्ध
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एक अच्छी किताब सौ अच्छे दोस्तों के बराबर होती है,लेकिन एक अच्छा दोस्त पूरे पुस्तकालय के बराबर होता है ।
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अपनी मंजिल का रास्ता स्वयं बनाये
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सबसे महान जीत प्यार की है, यह हमेशा के लिए दिलों को जीतता है ।

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क्रांति की धार विचारों के शान पर तेज होती है । भगत सिंह
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चौसा में धोबी महासंघ ने ज्योतिबा फूले की मनायी पूण्य तिथि जीवन संघर्ष पर विचार गोष्ठी का हुआ आयोजन

नेशनल आवाज़/चौसा :- नगर पंचायत चौसा में मंगलवार को अखिल भारतीय धोबी महासंघ के बैनर तले देश के महान समाज सुधारक ज्योतिबा फूले की पूण्यतिथि मनाई गई. महात्मा फूले के जीवनी पर प्रकाश डालते हुए वक्ताओं ने कहा कि ज्योतिबा ने 24 सितंबर 1873 को दलितों और निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा ने ‘सत्यशोधक समाज’ स्थापित किया. उनकी समाजसेवा देखकर 1888 में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि दी गई. ज्योतिबा ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरंभ कराया और इसे मुंबई हाईकोर्ट से भी मान्यता मिली. अछूतोद्धार के लिए ज्योतिबा ने उनके अछूत बच्चों को अपने घर पर पाला और अपने घर की पानी की टंकी उनके लिए खोल दी. नतीजतन उन्हें जाति से बहिष्कृत कर दिया गया. समाज सेवा के कार्यों से उनकी बढ़ती ख्याति देखकर प्रतिक्रियावादियों ने उन्हें मारने का भी षड्यंत्र रचा पर हत्यारे ज्योतिबा की समाजसेवा देखकर उनके शिष्य बन गए.

समाज के दबे-कुचले वर्ग के लिए ज्योतिबा ने ब्रिटिश शासन से भी टकराने में हिचकिचाहट महसूस नहीं की. इसके एकाधिक प्रमाण उनके जीवन में मिलते हैं. भारत में समाज सुधार आंदोलन के एक बड़े प्रणेता के तौर पर आज भी ज्योतिबा फुले का आदर इसलिए है क्योंकि उनके संघर्ष के रास्ते और मूल्यों के बूते ही देश में सामाजिक न्याय का आंदोलन आज भी आगे बढ़ रहा है और अपने आगे की हर तरह की चुनौतियों से निपट रहा है. इस दौरान छठुलाल रजक, राजेंद्र प्रसाद रजक, गुल मुहम्मद, सत्येंद्र रजक, रामस्वरुप रजक, सुबेदार , योगेन्द्र बैठा, प्यारेलाल, सुरेश रजक आदि शामिल रहे.

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