बिहार के लाल ने चन्द्रयान में किया अहम योगदान
गांव से पढ़कर इसरो तक का किया सफर, वैज्ञानिकों को देशवासियों ने किया सलाम
नेशनल आवाज़ :- आज पूरा भारत चंद्रयान-3 के सफल लैंडिंग पर गर्व महसूस कर रहा है. देश के हर गांव में लोग जश्न मना रहे हैं. इस सफलता के पीछे इसरो के सैकड़ो वैज्ञानिकों ने मिलकर वर्षों से मेहनत किया. जिसके मेहनत ने आज भारत को चांद पर पहुंचा दिया. इस चंद्रयान-3 के सफलता में बुद्ध की ज्ञानस्थली बिहार के रोहतास जिला निवासी अभय कुशवाहा का इसमें विशेष योगदान रहा है.
वर्षों से शिक्षा एवं ज्ञान की स्थली से अभय कुशवाहा रोहतास जिले के करगहर प्रखंड के गिरधरपुर निवासी स्वर्गीय शंकर दयाल कुशवाहा के पुत्र है. वर्ष 2006 में इसरो में वैज्ञानिक के पद पर इनका चयन हुआ था. तब से यह कई महत्वपूर्ण स्पेस मिशन में अपनी भूमिका निभा चुके हैं. इस मिशन के लिए भी इन्होंने इस्तेमाल होने वाले लॉन्च व्हीकल के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
ग्रामीण परिवेश में रहकर इनकी प्रारंभिक शिक्षा प्राथमिक विद्यालय एवं मध्य विद्यालय बभनी में हुई थी. उच्च शिक्षा के लिए शेरशाह कॉलेज सासाराम से इंटर किया. इसके बाद चंद्रशेखरइंद्र सरस्वती विश्वविद्यालय कांचीपुरम चेन्नई से इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की. यह बचपन से ही काफी कुशाग्र बुद्धि के रहे हैं. इनके बड़े भाई अजय कुमार सिंह बिहार सरकार में प्रखंड विकास पदाधिकारी के पद पर कार्यरत हैं. यह बक्सर जिले के राजपुर एवं सिमरी प्रखंड में सेवा कर चुके है.
चंद्रयान-3 की सफलता पर सभी वैज्ञानिकों को सम्राट अशोक परिवार के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह पूर्व मुखिया मकरध्वज सिंह विद्रोही, शिक्षक नेता धनंजय मिश्र, डॉक्टर सुरेंद्र कुमार सिंह, आशा पर्यावरण सुरक्षा के राज्य संयोजक सह बक्सर नगर पार्षद ब्रांड एंबेसडर विपिन कुमार, शिक्षक सिकंदर सिंह, छात्र नेता बबलू राज, उर्मिला सेवा संस्थान के कोषाध्यक्ष संजय कुमार, सम्राट अशोक क्लब के पूर्व बिहार प्रभारी दयानंद मौर्य, डॉ अभय मौर्य सहित अन्य लोगों ने सभी वैज्ञानिकों को बधाई दी है.
दुनिया का चौथा देश बना भारत
चंद्रयान-3 के सफल लैंडिंग के बाद चांद पर सफल लैंडिंग के लिए भारत दुनिया का चौथा देश बन गया है. इससे पहले अब तक अमेरिका,रूस एवं चीन के लैंडर ही चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग कर पाए हैं. इसरो ने इसे 14 जुलाई को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से लांच किया था.
चंद्रयान-1 (Chandrayaan-1)
भारत ने 22 अक्टूबर 2008 को Chandrayaan-1 को लॉन्च किया था. ये भारत का पहला मून मिशन था. ये Chandrayaan-1 एक ऑर्बिटल मिशन था. मतलब इसका काम सिर्फ चांद के चक्कर काटना था. Chandrayaan-1 ने चांद की सतह पर वॉटर मॉलीक्यूल्स यानी पानी को खोजा था. इसमें लगीं 11 मशीनों को भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, स्वीडन और बल्गारिया में विकसित किया गया था. इस खोज के बाद से चांद पर भविष्य में जीवन की संभावनाओं को और बढ़ा दिया.
Chandrayaan-1 ने चंद्रमा की सतह से 100 किमी की ऊंचाई पर चंद्रमा की परिक्रमा की. चंद्रमा की रासायनिक, खनिज विज्ञान और फोटो-भूगर्भिक की तस्वीरें भी कैप्चर की. साल 2009 में प्रमुख मिशन उद्देश्यों को प्राप्त करने के बाद अंतरिक्ष यान चंद्रमा से 200 किमी दूर कक्षा में ट्रांसफर हो गया. हालांकि, 29 अगस्त 2009 को इसरो से चंद्रयान-1 का संपर्क टूट गया.
चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2)
इसरो ने 2019 में चंद्रयान-2 मिशन लॉन्च किया था. इसका उद्देश्य चंद्रमा की उत्पत्ति और विकास को समझने के लिए डिटेल स्टडी करना था. चंद्रयान-2 को चंद्रमा पर एक रोवर उतारना था, लेकिन 7 सितंबर 2019 को लैंडर विक्रम का ग्राउंड कंट्रोल से संपर्क टूट गया. हालांकि, ऑर्बिटर अभी भी चालू है और चंद्रमा के बारे में डेटा दे रहा है.
इसरो ने कहा कि चंद्रयान-2 के निष्कर्षों ने चंद्रमा पर सतह-बाह्यमंडल संपर्क का अध्ययन करने का एक मौका दिया.