दुनिया के सबसे प्राचीन पर्व है धम्म विजय दिवस






रिपोर्ट : शंकर मौर्य
क्या है धम्म विजय दिवस
नेशनल आवाज़ :- ऐसा विश्व विदित है कि आश्विन सुक्ल दशमी को 261 ईसा पूर्व में सम्राट अशोक ने कलिंग विजय प्राप्त करने के बाद सम्राट अशोक महान ने धम्म विजय ( धम्म द्वारा राज्यों पर विजय ) करने का संकल्प लिया और बुद्ध के उपदेशों को राजधम्म बनाया.यह दिन विश्व इतिहास में धम्म विजय दसमी के नाम से प्रसिद्ध हुवा, आज के समय मे भी आम जनमानस महान पर्व धम्म विजय दिवस धूम -धाम से जगह जगह मना रही है.
धम्मविजय का उल्लेख सम्राट अशोक के शिलालेख में निहित है.ध्यान रहे की धम्म विजय का अर्थ हमेशा के लिए तलवार रख देना या युद्ध त्याग देना नहीं है. प्रजा की रक्षा, देश की सुरक्षा के लिए युद्ध करना राजा के लिए जायज है क्योंकि राजा की रक्षा और अपने देश की सुरक्षा करना राजा का कर्तव्य है यानी (राज धम्म) है.
बहुत से लोग यह बात समझते है कि धर्म और धम्म एक ही है तो ऐसा नही है. धर्म क्या है धर्म मे देव एवं देवी की पूजा अर्चना उनके मानने वाले लोग पुरोहित से पूजा विधि के तहत उपासना करते है एवं मन्नते मांगते है.त्योहार मनाते है.
धम्म का कोई अपना पुरोहित या पूजा विधि नही है.धम्म के अपने अंदर समाहित करने वाले लोग न मन्नते मांगते है.धम्म का अर्थ होता है , प्राकृत का दिया हुआ वो गुण. जिसे मानव या किसी भी तरीके से बदला नही जा सकता है, धम्म में असमानता नही होती कोई भेद भाव नही है. सभी लोगो पर बराबर लागू है.दुनिया के किसी भी धर्म, सम्प्रदाय, मत के मानने वाले लोग धम्म को एक पल के लिए भी नही छोड़ सकते.जैसे आग का काम है जलना यह इसका धम्म है.कोई हो आग में सब जल जाता है.सूर्य का काम है प्रकाश देना, सूर्य किसी के साथ भेदभाव नही करता. सभी लोगो पर प्रकाश एक साथ लगातार देता है.मिर्च का काम है तीता लगना , लगता है.गुड़ का काम है मीठा लगना , लगता है.बिछु काम है डंक मारना .
विश्व इतिहास में सम्राट अशोक महान ही एक मात्र शासक है जिन्होंने तलवार के बल पर नहीं अपितु बुद्ध के उपदेशों को अपने अंदर समाहित कर संसार का दिल जीता है. सम्राट अशोक के समय ही भारतवर्ष को सोने की चिड़िया कहा जाता था इसकी सीमाएं 52 लाख वर्ग किलोमीटर में विस्तृत थी. इंग्लैंड के प्रसिद्ध इतिहासकार समीक्षक एच०जी० वेल्स ने लिखा है कि “शासको के दसियो हजार नाम से इतिहास के पृष्ठ भरे पड़े हैं, जिन्में बड़े-बड़े राज्य में राजे-महाराजे शहंशाह का शासन शामिल है, इसमें सम्राट अशोक महान का नाम अकेले सितारे की तरह (रात में भी)चमक रहे है. आज हम उसी धम्म घोष को सम्राट अशोक के धम्म विजय दिवस के रूप में मानते हैं.
चक्रवर्ती सम्राट अशोक के शिलालेखों के अनुसार कलिंग युद्ध उनके राज्याभिषेक के आठवें वर्ष हुआ था.प्राचीन पाली ग्रंथ महावंश दीप वंश में उल्लेख है कि सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के वर्षों पहले ही अपने पुत्र महेंद्र (महिंद)और संघमित्रा (संघमित्ता) को भीखु -भिक्खुणी बनाकर श्रीलंका में धम्म प्रचार के लिए भेजा था. सम्राट अशोक महान ने अपने लघु शिलालेख में लिखवाया है कि अढ़ाई वर्ष से कुछ अधिक समय हो गया है. जबसे मैं प्रकट रूप से उपासक हो गया, लेकिन प्रचारक नहीं था” अर्थात चक्रवर्ती सम्राट अशोक महान ने कलिंग युद्ध से पहले ही एक बौद्ध उपासक थे.कलिंग विजय के बाद उन्होंने आश्विन शुक्ल दशमी को धम्मविजय यानी जनता के दिलों का राज करने का संकल्प लिया.आश्विन शुक्ल दसवीं का यह दिन विश्व इतिहास में धम्म विजयदशमी के रूप में प्रसिद्ध हुआ. इसी धम्मविजय दिवस के दिन 14 अक्टूबर 1956 को भारत रत्न डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने बहुत संख्या में नागपुर में बौद्ध धम्म ग्रहण किया.

