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Politics

पुलिस दमन के खिलाफ माले ने उठायी आवाज किसान मजदूरों के अधिकार के लिए होगा संघर्ष

नेशनल आवाज़ /बक्सर :- जिले के चौसा थर्मल पावर प्लांट के पास किसानों का आंदोलन पुलिस की कार्रवाई के बाद बंद हो गया है. बुधवार के दिन जिला के वरीय पदाधिकारी के साथ पहुंचे पुलिस बल के जवानों ने प्रदर्शनकारी किसानों को थर्मल पावर प्लांट गेट से हटने के लिए कहा. इसी बात को लेकर पुलिस एवं प्रदर्शनकारी किसानों के बीच हिंसक झड़प हुई थी. इसमें कई महिला पुरुष किसान एवं पुलिसकर्मी भी घायल हो गए थे. जिसके बाद से यह मामला काफी तूल पकड़ लिया है. किसानों के समस्या को लेकर भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने चौसा थर्मल पावर प्लांट के सामने अपनी जायज मांगों को लेकर विरोध कर रहे किसानों पर बर्बर पुलिसिया दमन और उसके बाद कई गांवों में पुलिसिया तांडव की घटना की कड़ी निंदा की है. उन्होंने कहा कि भाजपा-जदयू किसान विरोधी सरकार है. चुनाव में इन्हें सबक सीखाना होगा.

 

माले के डुमरांव विधायक अजीत कुशवाहा के नेतृत्व में जगनारायण शर्मा, नीरज कुमार, राजदेव सिंह और तेजनारायण सिंह की टीम ने बनारपुर, कोचाढ़ि, मोहनपुरवा सहित कई गांवों का दौरा किया. माले विधायक ने कहा कि संपूर्ण घटनाक्रम शाहाबाद के डीआईजी नवीन चंद्र झा, एसपी मनीष कुमार, एसडीपीओ धीरज कुमार, अनुमंडल पदाधिकारी धीरेन्द्र मिश्रा के साथ कई थाना अध्यक्ष की उपस्थिति में हुई. यह बेहद शर्मनाक है.

 

उन्होंने आगे कहा कि भूमि अधिग्रहण के मुआवजे की मांग को लेकर 17 अक्टूबर 2022 से किसान चौसा थर्मल पावर प्लांट के सामने विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. मामला सतलुज जल विद्युत निगम कंपनी के निर्माणाधीन 1320 मेगावाट के चौसा थर्मल पावर प्लांट, रेलवे कॉरिडोर एवं पाइप लाइन के लिए भूमि अधिग्रहण से जुड़ा हुआ है. इस परियोजना में पावर प्लांट के लिए करीब 20 गांव के सैकड़ों किसानों की जमीन जा रही है. लेकिन, सरकार द्वारा 2022 में मुआवजे की रकम 2013 के न्यूनतम मूल्य रजिस्टर (एमवियार) के सर्किल रेट से दी जा रही है. किसान इसका विरोध कर रहे हैं और विगत 17 महीने से उचित मुआवजे की मांग कर रहे हैं. लेकिन उनकी मांगें तो नहीं मानी गईं, उलटे बार-बार दमन किया गया.

 

बीते कुछ महीनों से किसान अपनी 11 सूत्री मांगों के समर्थन में निर्माणाधीन थर्मल पावर प्लांट के मुख्य गेट पर ही धरना दे रहे थे. 19 मार्च 2024 को प्रशासन द्वारा उच्च न्यायलय का आदेश एवं आचार संहिता का हवाला देते हुए मुख्य गेट से किसानों को हटाने के लिए 24 घंटे का अल्टीमेटम दिया गया. लेकिन किसान गेट से नहीं हटे. उसके बाद बुधवार की दोपहर प्रशासन भारी पुलिस बल के साथ धरना स्थल पर पहुंचा और धरना दे रहे किसानों को बलपूर्वक हटाने लगा. किसानो एवं पुलिस के बीच झड़प हुई. पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया, जिसमें कई किसान बुरी तरह से घायल हो गए.

पुलिस का तांडव इसके बाद और विकराल हो गया. बनारपुर, मोहनपुरवा, कोचाढ़ि आदि गांवों में घरों में घुसकर बच्चों, महिलाओं, बुजुर्गों को बर्बर तरीके से पीटा गया,  जहां किसानों के घरों में घुस कर बच्चों, महिलाओं, बुजुर्गों को पुलिस द्वारा बर्बर तरीके से पीटा गया तथा तोड-फोड़ व लूटपाट की गई.

 

प्रशासन द्वारा उलटे 28 लोगों को गिरफ्तार भी कर लिया गया है, जिनमें 7 महिलाएं शामिल हैं. लगभग 50 किसानों पर नामजद मुकदमा किया गया है. कोचाढ़ि के नेटुआ परिवार के लोगों को गिरफ्तार किया गया है. किसान आंदोलन के अग्रणी नेता रामप्रवेश यादव को गिरफ्तार कर पुलिस ने बंद कर दिया है.

भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट में यह सामने आ चुका है कि कंपनी ने किसानों की 1058 एकड़ भूमि जमीन अधिकृत कर ली है पर इसका उचित मुआवजा नहीं दिया है. जो मुआवजा दिया गया है, उसमें भी भष्टाचार हुआ है. भूमिहीन हो चुके 225 लोगों के पुनर्स्थापन की व्यवस्था नहीं की गयी है.

 

भाकपा-माले किसान आंदोलन की उपर्युक्त सभी मांगों का समर्थन करते हुए इस बर्बर दमन के जिम्मेवार पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग करती है. भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट के तहत उचित मुआवजा भुगतान करने तथा  भूमिहीन हो चुके 225 लोगों के पुनर्स्थापन की व्यवस्था की मांग करती है. प्रशासन को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तरीके से खुश करके कंपनी किसानों का गला घोंट रही है. यह बेहद संगीन मामला है. अतः इसकी उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए.

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