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एक अच्छी किताब सौ अच्छे दोस्तों के बराबर होती है,लेकिन एक अच्छा दोस्त पूरे पुस्तकालय के बराबर होता है ।
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अपनी मंजिल का रास्ता स्वयं बनाये
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सबसे महान जीत प्यार की है, यह हमेशा के लिए दिलों को जीतता है ।

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क्रांति की धार विचारों के शान पर तेज होती है । भगत सिंह
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Education

पूर्वजों की धरती पर कदम रखते ही झूम उठे विदेशी

बन्नी गांव में शिवचंद मेमोरियल स्कूल का मनाया गया वार्षिक समारोह

नेशनल आवाज़
राजपुर :-  पूर्वजों की जमीन पर कदम पड़ते ही मन खुशी से झूम उठा. हर इंसान बड़ा सोचे, बड़े सपने देखे. कोशिश जारी रखें. शिक्षा जिंदगी का एक अहम हिस्सा है.बगैर शिक्षा के कोई भी व्यक्ति आगे नहीं बढ़ सकता है. अपने लिए ही नहीं अपने देश के लिए भी जरूर पढ़ें. हम भी एक गरीब किसान के बेटे थे. घोर गरीबी में पले बढ़े .जब हमारे पूर्वज दक्षिण अफ्रीका में गए तो, उन्होंने भी मेहनत एवं लगन से खेती कर हमें आगे पढ़ाया. कोशिश करने के बाद आज नीचे से आसमान तक पहुंचने का हमने प्रयास किया. शिक्षा के बदौलत ही आज हमारे लड़के भी लंदन में पढ़कर डॉक्टर हैं. पोता पोती भी पढ़ रहे हैं. इसी उद्देश्य के साथ हमने अपने पूर्वज की याद में इस गांव में भी विद्यालय को खोला है.मेरे मरने के बाद भी इस विद्यालय के सफल संचालन के लिए हमारे लड़के एवं पोता पोती भी अगले आने वाले वर्षों में इसकी निगरानी करेंगे.
यह उक्त बातें राजपुर प्रखंड के बन्नी गांव स्थित शिवचंद मेमोरियल स्कूल के वार्षिक समारोह के अवसर पर शुक्रवार को  दक्षिण अफ्रीका से आए इस विद्यालय के संस्थापक डॉ राज राम किशन ने कहीं .विद्यालय का उद्घाटन विद्यालय के संस्थापक डॉ राज राम किशन उनकी पत्नी बिना सहित कई अन्य लोगों ने संयुक्त रुप से दीप प्रज्वलित कर किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता सुदामा प्रसाद सिंह एवं संचालन प्रधानाध्यापक विजय सिंह एवं शिक्षक कमलेश राम ने किया.कार्यक्रम के आरंभ होते ही विद्यालय के छात्र छात्राओं ने कहते हैं प्यार से इंडिया वाले.. मैया यशोदा.. सहित अन्य गीतों की रिकार्डिंग की प्रस्तुति कर विदेशी मेहमानों को खूब झुमाया.
बक्सर जिले के बन्नी गांव से दक्षिण अफ्रीका तक का सफर 
बन्नी गांव जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर है. जिस गांव के शिव चंद्र सिंह आज से वर्षों पूर्व बेहतर जिंदगी जीने के लिए वर्ष 1892 में कोलकाता रवाना हुए फिर 18 अप्रैल 1892 को कोलकाता बंदरगाह से दक्षिण अफ्रीका गये जो  करीब 32 दिनों की यात्रा के बाद डरबन बंदरगाह पहुंचे. डरबन में ईख  के खेतों में मजदूरी करना शुरू किया .कुछ वर्षों बाद दलित वर्ग की महिला झरिया से शादी कर ली जिनसे एक पुत्री जगरानी तथा दो पुत्र रामदारी एवं रामगोविंद हुए कुछ वर्षों के बाद उन्होंने जानकी से दूसरी शादी की जिनसे पांच पुत्र रामखेलावन, रामकिशन ,रामप्रसाद ,राम नारायण ,रामचरण और दो पुत्री बचनी और सामदायी हुई.
मजदूरी के बाद शुरू की ईख की  खेती 
शिवचंद्र इनानंदा में जमीन खरीद कर ईख एवं सब्जी की खेती करने लगे, खेती की बदौलत अपना एक घर भी बनाया .कुछ वर्षों बाद एक सवारी गाड़ी खरीदी और इनंदा से डरबन के बीच सवारी ढोने लगे .उसके बाद माल ढोने वाली गाड़ी खरीदी और इस तरह हुए प्रगति के पथ पर आगे बढ़ते गए. 1935 में वे अपने पैतृक गांव बन्नी में आए और अपने गांव की दुर्दशा को देखकर विद्यालय खोला था लेकिन चले जाने के कुछ समय बाद विद्यालय बंद हो गया.
दक्षिण अफ्रीका में लहराया सफलता का परचम 
बन्नी गांव से दूर विदेश की धरती पर इन लोगों ने आज अपना सब कुछ वही बसा लिया है. गिरमिटिया मजदूर के रूप में गए .मजदूरी करने के बाद आज इनका दक्षिण अफ्रीका में कई कंपनियां चलती है.
 1.एटलस ऑयल कंपनी
2. डरबन में सेंटिनल लगस्टिक बस बनाने वाली कंपनी
3.फ्लेमकाम मेटल इंडस्ट्रीज डायरेक्टर है यशोदा राम किशन
4.असक्रॉफ्ट मारुति बनाने की कंपनी सहित कई अन्य कंपनियां है.
कार्यक्रम में शामिल हुए विदेशी मेहमान  
विद्यालय के कार्यक्रम में इंग्लैंड से इस परिवार के डॉ विसेन रामकिसन,डॉ हिवावी रामकिसन,डॉ रोस्ले रामकिसन,डॉ विशाल कामथ,डॉ समीर साम,अमया रामकिसन,आरव रामकिसन,सात्विक साम,महेंद्र जाशी,अतीत शाह,गुलशन कोच्चर इंग्लैंड से आए लोगों के चेहरे पर अपने पूर्वजों के गांव आने की खुशी झलक रही थी.इस कार्यक्रम को सफल बनाने में मनोज कुशवाहा, अशोक सिंह ,राजनारायण सिंह,वार्ड सदस्य धर्मेंद्र सिंह,संतोष कुमार,सचिन कुमार,चन्दन सिंह,रंजीता कुमारी,प्रीति कुमारी सहित अन्य लोगों का सराहनीय योगदान रहा.

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