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फल्गु नदी के तट पर भारतीय परंपरा के अनुसार विदेशियों ने किया पिंडदान

पूर्वजों के मोक्ष प्राप्ति के लिए किया तर्पण

रिपोर्ट : वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र पुष्प
सभी फ़ोटो संकलन : रूपक जी 

नेशनल आवाज़/गया :- मोक्षदायिनी फल्गु नदी के तट पर स्थित मोक्षधाम विष्णुपद मंदिर से सटे देवघाट पर अपने पूर्वजों की मोक्ष प्राप्ति के निमित पिंड सामग्रियों के साथ झुंड के झुंड पिंडदानियों का आना और अपने पूर्वजों की मोक्ष प्राप्ति के निमित पिंडदान कार्य जारी है. इन दिनों विष्णुपद मंदिर परिसर, मंदिर के आसपास का क्षेत्र और देवघाट पिंडदानी से पटा हुआ है. पिंडदानी पवित्र फल्गु नदी में स्नानकर अपने पूर्वजों के मृतात्मा को तृप्त और मोक्ष प्राप्ति के निमित कर्मकांड में जुटे हैं. महिलाएं पिंड बनाने में तल्लीन है.अपने पूर्वजों की मोक्ष प्राप्ति के निमित देश – विदेश के विभिन्न क्षेत्रों से गयाजी आए पिंडदानियो का रुख मोक्षधाम विष्णुपद की ओर है.

पिंडदान करती विदेशी महिलाएं

 

भारतीय परिधान में विदेशी महिलाओं ने किया पूजा 

इसी झुंड में एक दर्जन विदेशी श्रद्धालु भी हैं जो अपने- अपने पूर्वजों की मोक्ष प्राप्ति के निमित गयाजी में पिंडदान कर रही है. सभी विदेशी महिलाएं भारतीय परिधान में है.वे निर्जला रहकर देवघाट पर अपने पूर्वजों का श्राद्धकर्म, पिंडदान और तर्पण की. जिसमें जर्मनी की 11 महिलायें और एक पुरूष  श्रद्धालु भी शामिल हैं. विदेशियों के इस जत्थे का नेतृत्व लोकनाथ गौड कर रहे थे.इन्होंने विधि पूर्वक पिंडदान कर्मकांड को संपन्न कराया.विदेशियों के इस जत्थे को पिंडदान कार्यक्रम को संपन्न कराने में यूक्रेन की जूलिया ज़ितोमिरस्का ने दुभाषिया के  रूप  में कार्य की. लोकनाथ गौड के द्वारा विदेशी पिंडदानियों को पिंडदान कर्मकांड से संबंधित दिए जा रहे दिशा-निर्देश को उनकी भाषा में अनुवाद कर रही थी, साथ ही पितृपक्ष और गया जी  की महत्ता से संबंधित जानकारियां भी साझा कर  रहीं  थी.

गया में तर्पण कराते भारतीय नागरिक

भगवती प्रसाद डालमियां काठमांडू (नेपाल) से मोक्षधाम गयाजी आए हैं. वे अपने पूर्वजों की मोक्षप्राप्ति के निमित देवघाट पर पिंडदान कर रहे हैं. इनके साथ परिवार के कुल 17 सदस्य साथ में हैं. सभी 17 दिनों तक गयाजी में रहकर अलग अलग तिथियों में श्राद्ध कर्म, पिंडदान और तर्पण करेंगे. श्री डालमिया बताते हैं की मेरे परदादा दुर्गा प्रसाद डालमिया 70 साल पहले गयाजी आकार अपने पूर्वजों की मोक्ष प्राप्ति के लिए पिंडदान किए थे.

ठहरने के लिए बना टेंट सिटी

गयाधाम में इन दिनों मृतात्माओं की तृप्ति के लिए पिंडदानियों का मेला लगा हुआ है.पितृपक्ष मेला के रूप में मशहूर गयाधाम में यह मेला 28 सितंबर से 14 अक्तूबर तक चलेगा. बिहार सरकार ने विश्वप्रसिद्ध पितृपक्ष मेला को राजकीय मेला घोषित कर दिया है. राज्य सरकार और जिला प्रशासन चौकस है। सफाई, स्वास्थ्य, सुरक्षा, यातायात, और आवासन की पुख्ता इंतजाम किया है. गया का गांधी मैदान को टेंट सिटी के रूप तब्दील कर दिया गया है. जहां ढाई हजार पिंडदानियों को निःशुल्क आवासन की व्यवस्था है.

 

भाद्रपद की पूर्णिमा और अश्विन मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को पितृपक्ष कहते हैं.इस वर्ष 2023 में पितृपक्ष मेला 28 सितंबर 2023 से 14 अक्तूबर 2023 तक रहेगा.

गयावाल पंडा महेशलाल गुपुत बताते हैं कि गयाधाम में पिंडदान का बहुत महत्व है. पहले गयाधाम में 365 पिंडवेदियाँ थी, जहां पिंडदानी अपने पूर्वजों की भटकती हुई मृतात्माओं की शांति और उनके मोक्षप्राप्ति के लिए एक पिंडवेदी पर एक दिन पिंडदान करते थे. इस प्रकार एक साल गयाधाम में रहकर 365 पिंडवेदियों पर पिंडदान करने का विधान था.  परंतु अब गयाधाम में स्थित बहुत सारे पिंडवेदियाँ विलुप्त हो गया है या अवैध रूप से कब्जा कर लिया गया हैं. वर्तमान समय में यहां मात्र 45 पिंडवेदियाँ मौजूद है, जहां पिंडदानी अपने पुर्वजों की मोक्षप्राप्ति के निमित पिंडदान करते हैं.

 

वे पूर्व और वर्तमान में सर्धालुओं का अपने पूर्वजों के प्रति आस्था के संबंध में बताते हुए कहते हैं कि लोग अब पूर्वजों के प्रति उतना आस्थावान नहीं रहे. लोग नौकरी, व्यवसाय व अन्य कार्यों में व्यस्त हो गए हैं. वे कम समय में गयाजी करना चाहते हैं.इन दिनों एक दिन, तीन दिन, पांच दिन, सात दिन से लेकर सत्रह दिन तक पिंडदान का प्रचलन है. लोग अपनी अपनी सुविधा और समर्थ के अनुसार पूर्वजों का श्राद्धकर्म, पिंडदान और तर्पण करते हैं.

 

गया में पिंडदान करने से मिलता है पुण्य 

यों तो पितरों की आत्मा की शांति के लिए देश में कई जगह पिंडदान और श्राद्ध कर्म किए जाते हैं, लेकिन गया में पिंडदान करना सर्वाधिक पुण्यदायी माना गया है.ऐसी मान्यता है कि गयाधाम में पिंडदान करने से पूर्वजों को जन्म-मरण से मुक्ति मिल जाती है.इसलिए यहां देश ही नहीं विदेशों से भी लोग पितपृक्ष के दौरान आकर अपने पूर्वजों की मोक्ष के लिए पिंडदान करते हैं. मान्यता है कि यहां पर पिंडदान और तर्पण करने से सात पीढ़ियों तक का उद्धार हो जाता है.

 

गरुड़ पुराण में लिखा है कि गयाधाम में श्राद्ध कर्म करने से पूर्वज सीधे स्वर्ग चले जाते हैं.क्योंकि यहां पर स्वंय भगवान विष्णु पितृ देवता के रूप में मौजूद होते हैं.इसलिए गया को पितृतीर्थ भी कहा जाता है. इसकी चर्चा विष्णु पुराण और वायु पुराण में भी है.

एक पखवाड़े तक गयाधाम में चलने वाला पितृपक्ष मेला में देश विदेश से आए पिंडदानियों से गया शहर भर गया है.गया शहर, बोधगया, मानपुर, अंदर गया की लगभग सभी होटल, धर्मशालाओं, मेला क्षेत्र में स्थित विद्यालयों में पिंडदानी भरे हुए हैं.बिहार सरकार के पर्यटन विभाग और जिला प्रशासन ने भी पिंडदानियों के लिए निःशुल्क आवासन की व्यवस्था की है.जिला प्रशासन रात दिन मुस्तैदी मेला क्षेत्र की साफ सफाई, बिजली, स्वास्थ्य, सुरक्षा, यातायात, आवासन सहित अन्य व्यवस्थाओं को दुरुस्त रखने में जुटे हुए हैं. इसके लिए गया के जिलाधिकारी ने अधिकारियों से लेकर कर्मचारियों तक को कई जोन में बांटा हैं. स्वास्थ्य, पुलिस प्रशासन, बिजली विभाग, लोक अभियंत्रण, नगर निगम के अलावे अन्य विभाग के कर्मियों को भी मेला क्षेत्र की व्यवस्था में लगाया गया है.

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