ओबीसी अधिकारों को अनुसूची IX में शामिल करने की मांग को लेकर राष्ट्रीय संवाद आयोजित
राज्यसभा सांसद पी. विल्सन ने तमिलनाडु के 69% आरक्षण कानून का उदाहरण देते हुए केंद्र से की स्थायी सुरक्षा की मांग





नेशनल आवाज़ :- “जब तक हमारी गिनती नहीं होगी, हिस्सेदारी कैसे मिलेगी?” यह सवाल आज नई दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में गूंजा, जहां सैकड़ों छात्र, विद्वान और नेता एक मंच पर जुटे. यह कार्यक्रम अखिल भारतीय ओबीसी स्टूडेंट्स एसोसिएशन (AIOBCSA) द्वारा आयोजित किया गया जिसका विषय था – जातिगत जनगणना, ओबीसी आरक्षण और संवैधानिक सुरक्षा. इस कार्यक्रम में ओबीसी अधिकारों को संविधान की अनुसूची IX में शामिल कर उनकी रक्षा सुनिश्चित करने की मांग उठाई गई.
तमिलनाडु का उदाहरण सामने रखते हुए राज्यसभा सांसद पी. विल्सन ने कहा, “अनुसूची IX में जगह मिले तो आरक्षण को कोई चुनौती नहीं दे सकेगा. सभी दलों और संगठनों को इसके लिए एकजुट होना होगा” तमिलनाडु का 69% आरक्षण कानून इसकी मिसाल है, जो संवैधानिक ढाल के चलते बचा हुआ है.तेलंगाना के पिछड़ा वर्ग मंत्री पोनम प्रभाकर ने बीसी संगठनों की एकता पर जोर देते हुए कहा, “ तेलंगाना के आरक्षण विधेयक को अनुसूची IX में शामिल करने के लिए संयुक्त प्रयास जरूरी हैं. हमें नरेंद्र मोदी सरकार पर दबाव बनाना होगा ताकि आरक्षण को सुरक्षित और विस्तारित किया जा सके.
AIOBCSA के राष्ट्रीय संयोजक एडवोकेट पंकज कुशवाहा और राष्ट्रीय सलाहकार अल्ला रामकृष्णा ने ओबीसी आंदोलन को मजबूत करने के लिए छात्र एकता को आवश्यक बताया.अल्ला रामकृष्णा ने कहा: “एकजुट छात्र शक्ति ही वो चिंगारी है, जो ओबीसी आंदोलन को नई रफ्तार दे सकती है.
पंकज कुशवाहा ने कहा: “हम राष्ट्रीय स्तर पर बैठकें, कार्यक्रम और विरोध प्रदर्शन सड़क से लेकर संसद तक आयोजित करेंगे ताकि केंद्र सरकार पर जातिगत जनगणना कराने, आरक्षण पर 50% की सीमा हटाने और ओबीसी सशक्तिकरण सुनिश्चित करने के लिए दबाव बनाया जा सके.हम देश में सामाजिक न्याय को गहराई तक ले जाने के लिए कड़ी मेहनत करेंगे. इसी के साथ उन्होंने आगामी कार्यक्रम की भी घोषणा की जो 27 अप्रैल 2025 को बिहार की राजधानी पटना में आयोजित किया जाएगा.
पूर्व तेलंगाना मंत्री और बीसी नेता श्रीनिवास गौड़ ने ओबीसी समुदाय से अपील करते हुए कहा अगर ओबीसी समुदाय को अपने अधिकारों की रक्षा करनी है, तो नेतृत्व की कमान खुद अपने हाथों में लेनी होगी. सामाजिक न्याय सिर्फ मांगने से नहीं, प्रतिनिधित्व से मिलता है.वहीं प्रो. सूरज मंडल और प्रो. रतन लाल ने छात्र सक्रियता को सामाजिक न्याय और जाति-आधारित समानता आंदोलनों का आधार बताया. उन्होंने कहा कि इतिहास साक्षी है कि छात्र आंदोलनों ने सामाजिक बदलाव की बड़ी लड़ाइयों को प्रेरित किया है.पूर्व आईएएस अधिकारी चीरंजीवीलु ने बुद्धिजीवियों की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सामाजिक न्याय की विचारधारा और नीतिगत वकालत को मजबूत करने में उनकी सक्रिय भागीदारी जरूरी है.उन्होंने विद्वानों, नीति निर्माताओं और छात्रों से संविधान में निहित ओबीसी अधिकारों को आगे बढ़ाने की अपील की.
इस संवाद में इलैया कुमार (SFD), ऋतु अनुपमा (आरक्षण क्लब, JNU), अक्षन रंजन (छात्र राजद), महेश, राकेश सहित विभिन्न विश्वविद्यालयों के छात्र नेताओं ने भी हिस्सा लिया. जिन्होंने ओबीसी सामाजिक न्याय आंदोलन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई और इसके लिए निरंतर सक्रियता की अपील की.यह राष्ट्रीय संवाद ओबीसी अधिकारों के लिए एक समेकित आंदोलन की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ. कार्यक्रम में संवैधानिक सुरक्षा, जातिगत जनगणना और आरक्षण के विस्तार की मांगों को मजबूती से दोहराया गया, जिससे सामाजिक न्याय की लड़ाई को नई दिशा मिलने की उम्मीद जगी.